सौराष्ट्र मे कइ शासकोने अपने नेक टेक और धर्म से शासन कर प्रजामे अपने नाम को अमर किया है,
एक एसे शासक हुए पुरे सौराष्ट्र पर जीनकी सत्ता चलती थी, जुनागढ के उपरकोट के किल्ले मे जिनकी राजगद्दी थी, वो थे चुडासमा राजवी रा’ डियास.
पाटणपति राजा दुर्लभसेन सोलंकी ने जुनागढ पर आक्रमण कीया. कइ साल घेरा रखने के बावजुद भी जब उस से उपरकोट का किल्ला जीत नही शका, सोलंकीने अपने दशोंदी चारण को बुलाया, दुर्लभसेन सोलंकी यह जानता था की रा’ डियास बहुत बडा दानी है, वे कीसी याचक को कभी निराश नही करेगा. अपने चारण को कीसी भी तरह से रा’ डियास का सर दान मे ले आने को कहा.
उस समय युद्ध गंभीर कीतना हो लेकिन चारण कीसी भी पक्ष मे बिना रोकटोक जा शकते थे.
रा’ डियास सोलंकी ओ का सामना करने हेतु सभा भर कर बेठे थे, वहां चारण आया, राजपुत सभा को रंग देकर दुहा-छंद की बिरदावली शुरु की, राजपुतो की प्रशस्ति के छप्पय छंद का आह्वान किया.
“धरा शीश सो धरे मरे
पण टेक ना मुके
भागे सो नही लडे शुरपद
कदी ना चुके
निराधार को देख दिये
आधार आपबल
अडग वचन उच्चार
स्नेह में करे नही छल
परस्त्रीया संग भेटे नही
धरत ध्यान अवधूत को
कवि समज भेद पिंगल कहे
यही धर्म राजपुत को”
एक एक दुहे पर रा’ डियास को शुरातन चडता जा रहा है, चारण की प्रशस्ति पुरी होते ही रा’ कुछ भी मांगने को कहते है, और चारण उसी समय का लाभ लेते हुए रा’ से उनका सिर दान में मंाग लेता हे, सारी सभा चकित हो जाती है, लेकिन रा’ के मुख पर एक दिव्य तेज सा स्मित रहता है, रा’ डियास एक पल का भी विलंब कीये बीना कमर पर बांधी ताती तलवार को छोड, गरदन पर तलवार चलाने से पहेले कहेते है, ” आज इस चारणने मुजे इतिहास मे अपना नाम अमर रखने का मोका दीया है, आज अगर मेरे हजार सर होते तो में हजारो सर का दान करता” और रा’ डियास ने चारण को अपने सर का दान दिया.
रा’ डियास की रानीयो ने जौहर कीया, लेकीन सोमलदे परमार नामकी रानी सगर्भा थी, इस लीए वे किल्ले से भाग जाती है, एक पुत्र को जन्म देती है, और उस पुत्र को जीवीत रखने हेतु अपनी वालबाइ नामकी दासी को पुत्र “नवघण” को सोंपकर कहेती है, ” आडीदर बोडिदर गांव मे जाकर वहा देवायत बोदर को कहना ये बालक को बडा करे और जुनागढ की गद्दी पर बीठाये” रानी सोमलदे ने देवायत बोदर को धर्म भाइ बनाया था,
दासी छुपते-छुपाते बाल नवघण को आडीदर बोडिदर के आहीर देवायत के यहां ले आती है और सोमलदे का संदेशा देती देती है.
देवायत बोदर नवघण को आहीराणी को सोंपां और कहा: भगवान मुरलीधरने आज अपने को राजभक्ति दीखाने का अवसर दीया है, और आज से अपने तीन बालक है.
आहीराणी ने अपनी बेटी जाहल का दुध छुडा दीया और नवघण को स्तनपान कराया, तीनो बच्चे नवघण, देवायत का बेटा उगा और बेटी जाहल को आहीराणी सोनबाइ मां का प्यार देने लगी,
तीनो बच्चे एक साथ बडे होने लगे, पांच साल के हो गये, लेकिन एक देवायत से जलने वाला आहीर सोलंकीओ के पास जाकर फरियाद कर देता है: आपके दुश्मन रा’डियास का बेटा अभी जीवीत है, और देवायत के यहां बडा हो रहा है.
सोलंकीओ की समुद्र जेसी फोज ने आडीदर बोडीदर को घेर लीया. आहीर समाज को इकट्ठा कर एक एक आहीर से कठोरता से पुछा गया : सच बताओ ! क्या डियास का बेटा नवघण देवायत के घर मे पाला जा रहा है?
लेकिन स्वामीभ्कती के रंग मे रंगा पुरा आहीर समाज सिर्फ इतना जवाब देता है की: हमे पता नही है.
देवायत बोदर के पास सोलंकी आते है, देवायत से कहेते है: राज के सामने तुम पटेलो ने उठकर दुश्मन बन रहे हो यह अच्छी बात नही, सच सच बताओ क्या नवघण तुम्हारे यहां बडा हो रहा है?
देवायत समज गया की जरुर कोइ आदमी दगा कर गया है, इस लीए देवायतने कबुल कर लीया, देवायत ने कहा : हां राजन! नवघण मेरे ही घर पर है, मेरे ही घर बडा हो रहा है.
वहां बेठे सारे आहीरो को एकबार तो देवायत का सर धड से अलग कर देने को तैयार हो गये, लेकीन चारो तरफ सोलंकी की समशेरोने उन्हे घेर रखा था.
सोलंकी सरदार: तो आपा देवायत, सोलंकीओ की शक्ति से क्या आप परिचित नही हो? क्या आप जानते नही हो की राज के शत्रु को शरण देने से आप का क्या हाल हो शकता है?
देवायत: राजन, में तो आप लोगो के प्रति मेरी राजभक्ति दिखाने के लीए नवघण को मेरे घर पाल रहा हुं, जब वो बडा हो जाता तो में खुद आकर उसे आपके पास छोड जाता, अब आप आ गये हो तो में घर पर पत्र लीख देता हु, आहीराणी को पत्र देते ही वे आपको नवघण सोंप देगी.
देवायत ने पत्र लीखा, आहीराणी, सोलंकीओ का जो शत्रु अपने घर पर इतने दिनो से पल रहा है, उसे इन आये हुए राजसैनीको के साथ भेज देना, रा’ रखकर बात करना,
सौराष्ट्र और गुजरात की भाषा एक है किंतु उनकी बोलने की शैली अलग है. पत्र के अंत मे जो लीखा था “रा’ रखकर बात करना” उसका मतलब सैनीको के साथ खुद देवायत का बेटा उगा को भेजना है, नवघण को नही भेजना है. सोलंकीओने पत्र पढा पर उन्हे उस बात का पता नही चला.
आहीराणी ने अपने बेटे उगा को राजसी वस्त्र पहनाये, आभूषणो से सुसज्ज कर के सैनीको के साथ भेज दीया. सोलंकी सरदारो ने देवायत के सामने ही उगा को नवघण समज कर सर धड से अलग कर दीया. कींतु देवायत के मुख पर एक भी दु:ख का भाव नही आया. देवायत के इर्षालुने फीर से सोलंकीओ को सुचना दी, ये अभी जो मरा वो नवघण नही बल्की उगा है, खुद देवायत ने अपनी ही संतान उगा को नवघण बनाकर आप से धोखा कीया है. सोलंकी ओने उस बात की पुष्टि करने हेतु आहीराणी को म्रुतक की आंखो पर से चलने को कहा, अगर आहीराणी की आंखोसे एक भी आंसु गीरा या चहेरे हावभावमें कोइ भी परिवर्तन आया तो मरने वाला उगा था, नही तो मरने वाला नवघण ही था एसा मानते.
आहीराणी को सभामें बुलाया गया. और आहीराणी सोनबाइने आंखमें से एक भी आंसु गीराये बीना आंखो पर से चली गइ. साबीत हो गया की मरने वाला नवघण ही था. सोलंकी ओ ने देवायत को सन्मान दीया.
जब नवघण बीस साल का हो गया, एक ही मुष्टीका के प्रहार से हाथी के कुंभास्थल को तोड दे एसा जवांमर्द बन गया.
देवायतने अपनी बेटी जाहल का विवाह सासतीया नाम के आहीर से कीया. विवाह मे पुरे सौराष्ट्र के आहीर समाज को आमंत्रीत कीया. और देवायतने आये हुए सभी महेमानो से देवायत ने सत्य बताया की: उस दीन जो सोलंकीओ के हाथो मारा गया वो मेरा बेटा था, असली नवघण अभी जीवीत है. नवघण की मां, मेरी धर्मबहन रोज मुजे सपनो में पुछती है की नवघण को गद्दी पर बीठाने में अभी कीतना समय है?
लेकीन आहीरो आज समय आ गया है, आज जुनागढ का तख्त पलटेगा, आप सभी की सहायता से में अपने पुत्र की म्रुत्यु का प्रतिशोध लुंगा.
वहां उपस्थित सभी आहीरोने जाहल की शादी का आमंत्रण देने आये है एसा कहकर उपरकोट किल्ले मे प्रवेश कर गये, और योजना के मुताबीक अंदर जाते ही सोलंकीओ को संहार करने लगे. नवघण अपने ‘झपडा’ नाम के घोडे पर बैठ कर उपरकोट की दीवालो पर से तीरदांजी कर रहे सोलंकी सैनीको का नाश करने लगा. सोलंकी ओ को हार माननी पडी.
देवायत ने नवघण (इ.स. १०२५-१०४४) को गद्दी पर बीठाकर अपने रक्त से तीलक कीया.
बहन जाहल के विवाहमें एक भाइ हर फर्ज अदा की, और बहन को कुछ भी मांगने को कहा, जमीन चाहीये तो जमीन, पुरा राज्य ताहीये तो पुरा राज्य और अगर बहन को सर चाहीये तो सिर दान भी दुंगा.
मगर जाहल ने कहा: नही भाइ, मुजे अभी कुछ नही चाहीये, कभी जरुरत पडी तो आप से मांग लुंगी…
बहन को विदा कर नवघण को गद्दी पर बीठाने के लीए जीतने भी आहीरोने सहायता की उनको योग्य भेट-सोगाद देकर नवघण ने आभार वियक्त कीया. फिर इतने अरसे मे कइ रजवाडे जुनागढ से जुदा हो गये थे, नवघण ने उन पर चडाइ कर के प्रथम उन्हे फिर से अपने राज्य विस्तारमे समा लीया, और पुन: पुरे सौराष्ट्र प्रांत को एक कर अपना राज्य विस्तार बनाया. प्रजा के हित के काम कीये.
कींतु सौराष्ट्र में अकाल पडा. बारीश हुइ नही, सारे नदि नाळे सुख गये. सारे मालधारी अपने गाय-भेंसो को लेकर सिंध आदि प्रांतोमे बसने चले गये.
रा’ नवघण पच्चीस साल का युवान, दोनो भुजाओ में अद्भुत बल, उसे अपने बल का प्रयोग कीये बीना रात को नींद नही आती एसा रणप्रेमी बन गया. सौराष्ट्र प्रांत में अपने दुश्मनो को एक एक करके खत्म कीये, गीर के जंगल में जाकर शेर का शीकार करता…
एक दिन एक भीखारी जेसा दीखने वाला आदमी उपरकोट के मुख्यद्वार पर बार बार आ रहा है, उसने पहेरेगीर से कहा : मुजे अंदर जाने दो, मुजे रा’ से मीलना है, मुजे उनका काम है.
लेकिन पहेरेदारो ने पागल समज कर भगा दीया. वो आदमी बहुत चिंतीत था. तुरंत वो रावल और हीरण नदी के संगमस्थान के पास गया, और वहां से घास तोडकर उसकी गठरी बांध ले आया, रा’ की घोडार के पास आ खडा हुआ, रा’ नवघण के घोडो का ध्यान रखने वाले आकर उस से घास खरीदने लगे, वो आदमी जानता था की रा’ को अपने सभी घोडो मे ‘झपडा’ नामका घोडा अति प्रीय है. और सप्ताह में एक दिन रा’ नवघण झपडा को देखने आते है, उस दीन रा’ से मुलाकात हो शकती है. इस लीये वो आदमी हररोज घास लाकर वहां बैठता था.
रा’ नवघण अपने पसंदीदा झपडा घोडे को देखने आये, तभी वो आदमी आगे आकर रा’ के हाथ मे एक खत देता है. खत पढते ही रा’ की आंखोमें आसु आ जाते.
वो व्यक्ति जीसने रा’ को खत दीया, और जीसे पहेरेदारोने किल्लेमे प्रवेश नही करने दीया था, वो जाहल का पति सासतीया था.
खत मे लीखा था,
“मांडव अमारे म्हालतो बांधव दीधेल बोल,
आज कर कापडानी कोर जाहल ने जुनाणाधणी.”
( हे बांधव, मेरे विवाह समय आपने मुजे वचन दीया था, कुछ भी मांगने को कहा था लेकीन हे जुनागढ के पति, मेने उस समय कुछ नही मांगा था लेकीन आज आप अपना वचन पुरा कर मेरी रक्षा करो.)
“नवघण तमणे नेह थानोरव ठरीया नही,
बालक बाळ्यप ले अणधाव्या उझर्या अमे.”
( हे वीर, आप पर प्रेम होने से मेरी माता ने मुजे स्तनपान छुडाकर, मेरे भाग का दुध आपको पीलाया था, और मे बीना दुध पीये ही बडी हुइ, आज उस दुध की खातिर मेरी रक्षा करो.)
“तु आडो में आपियो उगा मायलो वीर,
समज्यो मांय शरीर नवघण नवसोरठधणी.”
( हे सौराष्ट्र के भुप, आपके प्राणो की खातीर, मेरे पिता ने मेरे भाइ उगा का बलीदान दीया, पर आप अपने पुरे अंग को समज कर मेरी रक्षा करो)
“कुवे कादव आवीया नदीये खुट्या नीर,
सोरठ सडताणो पड्यो वरतवा आव्या वीर.”
( हे वीर, सोरठ(सौराष्ट्र) में कुए खाली हो गये है, नदीओ का पानी सुख गया है, अकाल होने के कारण मे परिवार के साथ सोरठ से बाहर हु, मेरी रक्षा करो)
“नही मोसाळे मावलो नही माडीजायो वीर,
सिंधमां रोकी सुमरे हालवा नो दे हमीर.”
( भाइ, मेरे मात्रुपक्ष में मेरी सहायता कोइ नही कर शकता, और मेरा कोइ भाइ भी नही है, एसी स्थितीमे में सिंध मे हु, और सिंध का राजा हमीर सुमरा मुज पर मोहीत है, वो मुजे अपनी रानी बनाना चाहता है, मुजे उससे बचाओ)
रा’ नवघण सासतीया से पुछते है, बात क्या हे ? मुजे पुरी बताओ.
सासतीया: सोरठ मे अकाल होने के कारण हम सिंधमें चले गये. वहां जाहल नदी से पानी भरने गइ थी, और उसी वक्त वहां से सिंध का राजा हमीर सूमरा ने जाहल को देखा, जाहल का सौंदर्य देखकर वह जाहल पर मोहीत हो गया है, जाहल को प्राप्त करने की उसकी इच्छा है, कामवासना में वह अंधा हो गया है, जाहल ने उस से छ: महीनो के व्रत का बहाना बनाया है, मुजे ये पत्र ले कर आपके पास जाहल ने भेजा. अब केवल एक महीना बचा है, अगर समय रहेते नही पहुंचे तो जाहल आत्महत्या कर लेगी लेकीन हमीर की इच्छा पुरी नही होने देगी.
रा’ नवघण ने तुरंत ही अपनी अस्वसेना तैयार की. पुरे सोरठ के नवयुवान शस्त्रो से सुसज्ज होकर रा’ की धर्मबहन जाहल की लाज बचाने हेतु जुनागढ पहुंच गये.
जेम राणो जेठवो, तेड वाढेर बलाखो,
कनक तेड केसुर, तेड झालो गोपाळो,
सोलंकी अइब, तेड शीलाजीत वाळो,
बाबरीयो रणधीर, तेड गोहील डाढाळो,
वाघेर तेड वीरमदे, काठी हरसुर करणो,
धाखडोने तेड बाळीण, पोहसेन नवघण समधरणा…
रा’ ने सोरठ में उंटसवार दोडाया ओर युद्धमे वीरो को आमंत्रीत कीया.
किरपाण मरदा कसी कम्मर
बदन भीडी बख्तरा
भुजदंड वेगे प्रचंड भाला
तीर बरछी तोमरा
हेमरा नवलाख हुकडे
खंत थी अरी खोडवा
नरपति सजीयो सैन्य नवघण
धरा सिंध धमरोळवा…
समंदर जेसी सेना के साथ नवघण नीकल पडा सिंध को पराजीत कर के बहन जाहल को बचाने…
मार्ग मे एक नेस आता है, रा के पुछने पर साथी बताता हे सांखडा नरा नामके चारण का नेस है.
इतने में एक दिव्य बालीका आकर रा’ के झपडा की लगाम पकड लेती हे, रा’ उन्हे समजाते की आप लगाम छोड दीजीये, घोडा आपको चोट पहुंचा देगा, तब वह बालीका कहती है, ” मे. वरुडी हुं, यह नेस मेरे पिता का है, और आज आप यहां से एसे ही नही जा शकते, आप हमारे महेमान हे, मे आपको सेना सहीत भोजन करा के ही विदाय करुंगी,”
रा’ नवघण: आइ, में आज मेरी पुरी सेना के साथ हुं, आपका नेस छोटा हे, मेरी सेना बहुत बडी हे.
आइ के कहना मानकर नवघण को आइ वरुडी पास भोजन के लीए रुकना पडा. लेकीन आइ वरुडी के चमत्कार से रा’ अनजान थे.
आइ वरुडी ने रा’ और पुरी सेना को पंगत में बीठाया. इतनी बडी सेना के लीये थाली थी नही. वरुडी की बहन शव्यदेव पास के बरगद के पेड पर चड गये, और बरगद के पत्तो की थालीया बना दी. आइ वरुडी ने अपनी एक ही कुलडी(एक पात्र) से ३२ पकवान रा’ नवघण को खीलाये. पुरी सेना को एक ही कुलडी से भोजन कराया. पुरी सेना ने कभी इतना स्वादिष्ट भोजन नही खाया था. सभी त्रुप्त हुये.
रा’ नवघण ने आइ वरुडी को हाथ जोडकर नमन कीया.
आइ वरुडी ने कहा: रा’ अगर आप सिंध जाते समय समुद्र के किनारे किनारे चलोगे तो समय पर नही पहुंच पाओगे.
रा’ ने मार्गद्शन मांगा.
आइ वरुडी: रा’ आप समुद्र के कीनारे जाकर मां खोडीयार का स्मरण करना. ओर जब आपके भाले पर काली देवचकली आकर बेठे तो मानना आइ खोडीयार आपके साथ है, और आप समुद्र मे अपने घोडे को उतारना, आपको मां खोडीयार सहाय करेगी.
और नवघण ने अपनी सेना के साथ वहां से प्रस्थान कीया सिंध की ओर.
कच्छ प्रदेश की सीमा पुरी हुयी, आगे समुद्र आ गया.
रा’नवघण ने मनोमन आइ खोडीयार का स्मरण कीया, उनसे समुद्र पार करने के लीए सहायता मांगी.
इतने मे एक काले रंग की चीडीया जीसे देवचकली कहेते है, कहीं से आइ और रा’ के भाले की नोक पर बैठ गइ.
सारी सेना ने एक साथ मां खोडीयार का जयघोष कर गगन को भर दीया.
रा’ ने अपने झपडा को पानी मे चलाया, और पुरी सेना ने भी आस्चर्य के साथ समुद्र मे घोडे उतारे. लेकीन मां खोडीयार ने अपनी शक्ति से समुद्र मे भी मार्ग बना दिया. दोनो तरफ पानी की दीवार हो गइ बीच मे से पुरी सेना पसार हो रही थी.
उस तरफ जाहल बार बार सोरठ से आने वाले रास्ते पर नजर कर रही थी, मेरा धर्म भाइ आता होगा. क्युंकी आज हमीर सूमरा की दी गइ अवधी का अंतिम दिवस था. जाहल जगदंबा से प्रार्थना करने लग गइ, सुर्य अस्त होने वाला था.
हमीर सुमरा रात का आनंद लेने उतावला हुआ जा रहा था. नये वस्त्र पहेने, नये आभुषण सजे, कइ प्रकार के अत्तर का छंटकाव कीया.
जाहलने अंतिम बार सोरठ से आते रास्ते पर नजर की, कुछ नही था वहां, बीलकुल शांत वातावरण था उस मार्ग का, जाहलने निराश होकर समंदर की ओर देखा, और खुशी से उस की आंखे भर आयी, समंदर के पानी की दीवाल, बीचमें असंख्य अस्वदल आ रहा हे, ध्यान से जाहल ने देखा, पताका, उस के मुंह से उद्गार नीकले: घणी खम्मा मेरे वीर, वही पताका हे! मेरे देश सोरठ की ही पताका है! मेरा भाइ मेरी आबरु बचाने आ पहुंचा…
रा’ नवघण के सैन्य ने सुमरा हमीर के नगर में प्रवेश पा लीया…
रा’ का सैन्य सिंध के मुसलमानो को गाजर-मुली की तरह काटने लगा…
एसा लग रहा था जेसे भगवान सूर्यनारायण भी इस युद्ध देखने रुक गये हो, और आज जेसे वे भी सुमरा पर क्रोधित हुए हो इस तरह अपने क्रोध को दीखाकर धरती पर सांज का लाल प्रकाश गीराने लगे….
ढाल, तलवार, भाले के खनखनाट चारो और सुनाइ देने लगे, रण के देवता काल भैरव रक्त के पात्र भरने लगे, मारो मारो के हाहाकार चारो तरफ बोलने लगे, रा’ नवघण पुरे रण घुमने लगे, रक्त की धाराए बहने लगी, एक जगह हमीर सुमरा रा’ के सामने आ गया, दोनो बलवान योद्धा थे, एक एक कर दोनो तलवार के प्रहार कर रहे थे, हमीर सुमरा घोडे से गीर गया, रा’ नवघण भी घोडे से उतरकर जमीन पर आ गये, नवघण ने अपने बल का प्रयोग कीया तलवार से जनोइवढ घा कीया, और हमीर सुमरा का शीरच्छेद हुआ.
रा’ नवघण की विजय हुइ, हमीर सुमरा मारा गया, बहन जाहल को लेकर जुनागढ वापस आये…
तारीख 08-05-2009 को रा’ वंशज चुडासमा, सरवैया, रायजादा राजपुत समाजने आहीर समाज की हाजरी मे आपा देवायत और आइ सोनबाइ का भव्य मंदीर बनवाया.
– दिव्यराजसिंह सरवैया (देदरडा)
Divyrajsinh Sarvaiya (Dedarda)
ઉપર કોટ પરના વીર ખિમડીયા વિશે માહિતી આપવા વિનંતી. .
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ખુબ જ સરસ માહિતી છે… આભાર દિવ્યરાજસિંહ…
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જય હો રાજ ખોડિયાર,
આભાર : દિવ્યરાજસિંહ સરવૈયા
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🙏
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Mahyavanshi Kshatriya nu ithihas ne bhai
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ra khet singh khagar chhudasama rajput hai ra kavat ke jesth putra ra jay singh ke bhai
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JAY MAA KHODIYAR
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જય હો રાજ ખોડિયાર
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Gohil chandravanshi chhe k Suryavanshi bapu aa babat mahiti hoy to 9727779779 par janavva vinnanti
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Mokhdaji gohil charitable trust ni website google ma search karo ema badhi mahiti aapi chhe.
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ગુજરાત નો ભવ્ય ઇતિહાસ આજ ની યુવા પેઢી જાણતી નથી એમને પણ પોતના ગૌરવશાળી ઇતિહાસ ની જાણકારી હોવી જોઈએ.સોમનાથ મંદિર નો ઇતિહાસ પણ ગૌરવશાળી છે એની જાણકારી આપવા વિનંતી.
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સોમનાથ ટ્રસ્ટ ની વેબસાઈટ માં સંપૂર્ણ માહિતી આપને મળી રહેશે
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Khub saras mahiti che sarvaiyabhai.
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ધન્યવાદ ભાઈ.
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Sarvaiya saheb. Bahuj saras. Koti koti abhi nandan
Jay jay garvi gujrat
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ધન્યવાદ
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Navghan ketalo samay teni Mata na garbh ma rahiyo hato
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જેટલું સામાન્ય બાળક રહે તેટલો.
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સાહેબ એક વિનંતી છે કે ખીમડિયા દાદા વિષે કે એનો શું ઇતિહાસ હતો તેના વિસે જણાવસો ….
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Mare pan Hanau 6
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Excellent article. I’m going through some of these
issues as well..
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Thank you for your compliment
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I want to know history of dada khimadiya
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I want to know history of dada khimadiya raja
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sindha -gohil ni koi information aapjo sir
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જૂની પોસ્ટ ચેક કરો તેમાં જ મળી રહેશે.
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Please sent your contact
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Bapusarvaiya@gmail.com
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Khimadiya Dada Upar not wada ni history lakho ne pls its very humble request to you sir
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To somdevbai Parmar je Raa”Diyas na ptni hata ne Raa”Navghan na mata hata to parmar na रा’वंशज thaya ne? Plz Give to this answer .
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परमार रा वंश ना केवाय…
परमार ने पारकरा परमार कही शको,
सरवैया, चुडासमा रायजादा ज रा वंशज कहेवाय, बीजू कोई नही।
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દિવ્યરાજસિંહ સરવૈયા મને જવાબ આપો આહીર યાદવ યદુવંશી નથી ? चंद्रवंशी जाडेजा राजवंश का इति આમાં લખેલું સે એટલે પુશું સુ ….
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Raa navghan borth date kai se
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એ સમયે અંગ્રેજી કેલેન્ડર નહોતા, એટલે ત્યારે birthdate આવતી નહોતી. પણ હા એમનો સમયગાળો ઇ.સ. 1026 માં હતો.
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