॥ओढ़ा जाम अने होथल पदमणी॥
कच्छ कीयोर ककडाणा नो ओढ़ा जाम पोताना मासियाइ भाई वीसलदेव वाघेला नु वेर लेवा थरपारकर ना बांभणीया बादशाह नी सात वीसु (140) साँढ़णी माटे लड़ाई करवा आगड़ वध्यो, बीजी बाजु निगामरा नी दिकरी होथल पदमणी कनडा माथी पितानी अंतिम इच्छा पूरी करवा एकलमल्ल नाम धारण करी बांभणीया नी साँढयो लेवा तत्पर थई, मार्ग माँ ओढ़ा जाम अने एकलमल्ल नो परिचय थयो, बन्ने नु लक्ष्य एक ज होवाथी साथे ज चढाई करवी एम नक्की थयु. एकलमल्ले साँढयो ने छुट्टी करी ओढ़ा ना माणसो साथे भगाड़ी, माणसो साँढयो लइ रवाना थया, एकलमल्ल बांभणीया ने अने तेनी सेना ने रोकवा एकलो त्या उभो रह्यो, ओढो पण एकलमल्ल साथे त्यां ज रोकाणो, एकलमल्ले बांभणीया ना सेनापती ने पाछु वळवा जणावयु पण सेनापती न मानता एकलमल्ले तीर छोड्यू…
पेले वेले बाण, पूवे तगारी पाड़ीया।
कुदाया केकाण, होथि घोड़ो झल्लिये॥
( पहले ज तीरे पादशाह ना डंका वाळा ने पाड़ी दीधो, डंको धूळ माँ मळ्यो)
बीजू बाण मारयु.
बीजे घाये बाण, पूवे छत्तर पाड़ीयो।
कुदाया केकाण, होथी हल्ली निकळ्यो॥
( छत्र पाड्यु, घोड़ो कुदावयो अने एकलमल्ल चाली निकळ्यो, ताजुबी माँ गरक थई बांभणीयो थंभी गयो)
सेनापती दरीयलखान पूछे छे…
माडु तों मुलान, तुं कियोरजो राजियो।
पूछे दरीयलखान, रूप सोरंगी घाटियो॥
(ए मानवी, तु एवो बहादुर कोण? तु पोते ज कीयोर नो राजा ओढो?)
एकलमल्ल जवाब वाळे छे,
नै माडु मुलान, नै कीयोरजो राजियो।
खुद सुण दरीयलखान, (हुं) चाकर छेल्ली बाजरो॥
( हे सेनापती, हु तो ओढ़ा जाम नी छेल्ली पंगत नो लडवैयो छु, माराथी तो सातगणा जोरावर योद्धा आखा मार्गे उभा छे माटे पाछा वळी जाव, नकर कब्रस्तान विश-पच्चीस विघा वधी पडशे)
बांभणीया ऐ लालच आपी..
बांभणीयो के बेलीडा, करिये तोजी आश।
करोड़ डीजा कोडसु, चंदर उगे मास॥
( बांभणीये साद दीधो के हे शूरवीर तारी एक नी ज आशा करतो उभो छु, हाल्यो आव, दर महीने चांदरात ने दिवसे तने एक करोड़ कोरी नो मुसारो चुकविश.)
पण एकलमल्ल तटस्थ रह्यो..
करोड़ न लीजे कीनजा, न कींजे कीनजी आश।
ओढो असांजो राजियो, आंउ ओढ़े जो दास॥
( कोई नी करोड़ कोरी लुंटीश नही, मारी आशा मेली देजे, हु ओढ़ा नो दास छु.)
ओढ़ा अने एकलमल्ल ना जुदा पड़वा नो समय आव्यो. लक्ष्य पूर्ण थयु हतु, ओढो पूछे छे के भाई एकलमल्ल मने भुलसो तो नही?
एकलमल्ल जवाब आप छे…
जो विसारु वलहा, घड़ी एक ज घटमां।
तो खापणमांय खता, (मुने) मरण सजायु नव मळे॥
( एक पलक पण जो हु मारा हैया माथी मारा वा’ला ने विसारु तो तो हे ईश्वर मने मरण टाणे साथरोय मळशो मा, अंतरीयाळ मारु मोत थजो, मारु मडदु ढांकवा खापण पण मळशो नही, ओढ़ा जाम! वधु तो हु शु कहु?)
जो विसारु वलहा, रुदिया माथी रूप।
तो लगे ओतर जी लुक, थर बाबीडी थई फरा॥
( हे वा’लीडा अंतर माथी जो तारु रूप विसरी जाउ तो मने उतरादी दिशा ना ऊना वायरा वाजो, अने थरपारकर जेवा उज्जड अने ऊना प्रदेश माँ रणबाबीडी (होली) पंखिणी नो अवतार पामी ने मारो प्राण अपोकार करतो करतो भटक्या करजो.)
ओढो पिराणा पाटण नो मार्ग लये छे अने एकलमल्ल कनडा नो…
रस्ता मा ओढ़ा ने विचार आवे छे के आवा विजोग ना दूहा पुरुषह्रदय ना न होइ शके,आवी उर्मी कोई स्त्रीनी ज होय शके… एकलमल्ल नु सत्य जाणवा ओढो पोताना साथियो ने वीसलदेव पासे मोकले छे अने पोते एकलमल्ल ने मार्ग उपड़े छे…
झाझा डीज जुवार, विसरदेव वाघेलके।
जीते अंबी वार, तीते ओढो छंडियो॥
( जाओ अने विसरदेव वाघेला ने मारा झाझा जुहार केजो, अने पूछे तो केजो के ज्यां बांभणीया नी सेना आंबी गई त्यां धींगाणु करता ओढो काम आवी गयो.)
जेम ओढ़ा अने एकलमल्ल ने मित्रता थई हती एम बन्ने ना घोड़ा पण एकबीजा ना जाणीता थया हता, चखासर तळाव नी पाळे एकलमल्ल ना घोड़े हावळ दीधी त्या तो ओढ़ा नो घोड़ो पण हावळ दई जाणे होंकारो देवा लाग्यो…
ओढ़ा इ पाळ माथे चड़ी जोयु.. पण तळाव नु दृश्य जोई अवाचक बनी गयो…
चड़ी चखासर पार, ओढ़े होथल न्यारिया।
वीछाइ बेठी वार, पाणी मथ्थे पदमणी॥
( पाळे चड़ी ने नजर करे त्यां तो चखासर ना हिलोळा लेता नीर ऊपर वासुकी नाग ना बचला जेवा पेनीढक वाळ पाथरी ने पदमणी नहाय छे, चंपकवरणी काया पर चोटलो ढंकाई गयो छे.)
चड़ी चखासर पार, होथल न्यारी हेकली।
सिंधे उखला वार, तरे ने तडकुं दीये॥
( एकली स्त्री! देवांगना जेवा रूप! पाणी ऊपर तरे छे. मगर माफक सेलारा मारे छे.)
होथल ने जाण थई के ओढो जुवे छे तो ओढ़ा ने झाड़ पाछड़ संतावा कह्यु कारण पोते स्त्री छे. एकलमल्ल नही. मारू नाम होथल छे..
ओढो ओथे उभियो, रेखड़ीयारा जाम।
नही एकलमल्ल उमरो, होथल मुंजो नाम॥
( ए ओढ़ा जाम! झाड़ नी ओथी उभा रहो, हु तमारो एकलमल्ल नही, हु तो होथल. हु नारी. मने मारी एब ढांकवा द्यो.)
एकलमल्ल ना बदले देवांगना स्त्री जोई ओढ़ा ना ह्रदय माँ प्रेम ना अंकुर फुट्या, होथल नी पण एज हालत हती… वातावरण प्रेममय बनी गयुं.
चाव तो जीवाढ्य मार्य, मरणुं चंगुं माशूक हथ।
जिव जीवाडणहार, नैणां तोजा नीगामरी॥
( होथल, हे निगामरा नी पुत्री, चाहे तो मने मार, चाहे तो जीवाड, तारा हाथे तो मोत पण मिठु.)
बन्ने ऐ सूरज नी साक्षी माँ विवाह कर्या..
रणमें कियो मांडवो, विछाइ दाडम ध्राख।
ओढो होथल परणींजे, (तेंजी) सूरज पुरजे शाख॥
( वनरावनमां दाडमडीना झाड़वा झूली रह्या छे, झाड़वाने माथे द्राक्ष ना वेला पथराई ने लेलूंब मंडप रचाई रह्या छे, एवा मंडप नो मांडवो करीने आज होथल ओढो हथेवाळे परणे छे, हे सूरज देव एनी साक्षी पुरजे.)
चोरी आंटा चार, ओढ़े होथलसे डींना।
नीगामरी एक नार, बीजो कियोरजो राजियो॥
( ते दिवसे सांज ने टाणे ओढो होथल नी साथे चोरी ना चार आंटा फर्यो, एक निगामरा वंश नी पुत्री, ने बीजो कीयोरककडाणा नो राजवी, मानवी अने देवीए संसार मांड्यो, डूंगर ना घर कर्या, पशुपंखी नो परिवार पाळ्यो.)
ओढ़ा ने घेर बे बे पुत्रो थया… जेसळ अने जखरो.
दस दस जेटला वर्ष दस दिवस नी जेम वीती गया, एक दिवस बन्ने बाळको दौड़ी ने पिता ना खोळामाँ चड़वा गया… पण ते दिवसे पेलीवार ओढ़ा ए पुत्रो तरफ ध्यान न आप्यु.. कारण वर्षा ऋतु आभे चड़ी चड़ी ओढ़ा ने पोताना कच्छडा नी याद अपावती हती..
उत्तर शेढ्यु कढ्ढीयु, डूंगर डंमरिया।
हेडो रड़फे मच्छ जीं, सजण संभरिया॥
( ओतरादा आभमाँ वादळीओ नी शेढ्यो चड़ी, डूंगरा ऊपर मेघाडंबर घघुंभ्यो, आणु वाळी ने चाली आवति कामिनिओ जेम पोताना स्वामीनाथ ऊपर वहाल वरसावती होय तेम ओढ़ा नु हैयु तरफड़वा मांड्यु, ओहोहो! ओढ़ा ने स्वजन सांभर्या, जन्मभोम सांभरी, बाळपण ना मित्रो सांभर्या, वडेरो अने नानेरो भाइओ सांभर्या, कीयोर ककडाणा नो पथ्थरे पत्थर ने झाडवे झाडवा सांभरी आव्या, ओढो उदास थई जन्मभोम नी दिशा माँ जोई रह्यो.)
बाळको ऐ माँ होथल पास फरियाद करी के बापू आज अमने तेड़ता नथी, उदास बेठा छे.. होथल ओढ़ा पास आवी, ओढ़ा ने उदास जोयो… त्यां तो सामें झाडवे चड़ी ने त्रण वार गळु फुलावी मोरलो केहूक… केहूक… केहूक… करी ने टहुकार करवा लाग्यो… ओढो वधु उदास थयो… आ जोई होथल मोरला ने कहे छे.
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मत लव्य मत लव्य मोरला, लवतो आघो जा।
एक तो ओढो अणोहरो, ऊपर तोंजी घा॥
( ओ मोरला! तारी लवरी करतो तू दूर जा, एक तो ओढो उदास छे ने एमा तू घा पोकारी ने एने वधु अफ़सोस का करावी रह्यो छे?)
मोरला ए टहुकारा चालु राख्या एटले होथले फरी चेतवणी आपी…
मारिश तोके मोर, सिंगणजा चडावे करे।
अर्ये चीतजा चोर, ओढ़ेके उदासी कियो॥
( तुं उड़ीजा नकर तने तीर चडावीने विंधि नाखिश, हे चीतडा ना चोर, ते आज ओढ़ा ने उदास करी मुकयो.)
पण मोरलो तो टहुकारो करतो करतो जाणे प्रतिउत्तर आपे छे…
अंसी गिरिवरजा मोरला, कांकर पेट भरा।
(मारी)रत आवे न बोलिया, (तोतो) हैडो फाट मरा॥
( हे पदमणी, अमे तो डूंगर ना मोरला, अमे गरीब पंखीडाँ कांकरा चणी चणी पेट भरिये, अमारी ऋतु आव्येय अमे न टौकिये, चुप बेसी रहिये, अंतर माँ भरी राखेला गीतों दबावी राखिये तो तो अमारा हैडा फाटी जाय, अमारु मोत थाय, आषाढ़ महीने अमाराथी अबोल केम रहेव
ाय.)
होथल मोरला पर क्रोधित थईने धनुष नी पणछ चडावी सरसंधान करे छे… एटले ओढो रोकता कहे छे के…
गेली म था गेलड़ी, लांबा न बांध्य दोर।
गाळे गाळे गळकसे, तू केताक उडाडीश मोर॥
( हे घेली, धनुष्य नी पणछ न बाँध, गरनी आ खीणे खीणमाँ असंख्य मोरला टौकी रहेल छे, तू केटलाक ने मारी शकिश?)
करायलकें न मारीयें, जेंजा रता नेण।
तड वीठा टौका करे, नित संभारे सेण॥
( अरे होथल, बिचारा मोर ने ते मराय? एना रातुडा नेत्र तो जो! केवा प्यारा लागे छे, अने ए बिचारा पंखी तो टौकता टौकता एना वहालशेरी ने संभारे छे.)
रेलमछेला डूंगरा, चावो लगे चकोर।
विसर्या संभारी डीए, से न मारजे मोर॥
( आवा रेलमछेल डूंगरा नी अंदर छलकाता सुख नी वच्चे मानवी ने पोताना विसारे पड़ेला वहाला याद करावी आपे एवा परोपकारी मोरला ने न मराय.)
पण जनमभोम नी याद ओढ़ा ने एटली वधि के जे छीपर पर ओढो बेठो हतो इ छीपर ओढ़ा ना आसुंडे पलळी गई. होथल ओढ़ा ने मनाववा पूछे छे…
छीपर भींजाणी छकहुवो, त्रंबक हुई व्या नेण।
अमथी उत्तम गारिया, चड़ी तोजे चीत शेण॥
( जे शीला पर ओढो बेठो हतो ते शीला आंसूड़े भींजाइ गई, रोनार नी आँखों धमेल त्रांबा जेवी राती थई गई. त्यार पछी होथल गरीबडु मों करी ने बोली: ओढ़ा! शु माराथी अधिक गुणवती कोई सुंदरी तारा चीत माँ चड़ी? नीकर तु आज आम मने तरछोड़त नही.)
ओढो प्रत्युत्तर आपे छे…
कनडे मोती निपजे, कच्छ में थीयेता मठ।
होथल जेडी पदमणी, कच्छमें नेणे न दठ॥
( होथल, एवा अंदेशा आण्य माँ, मोढ़ा ऊपर आवड़ा बधा आळ शोभे? ओ मारी होथल, तारा सरखा मोती तो कनडा मां ज निपजे छे, कच्छ माँ तो भुंडा मठ ज थाय छे, तारा जेवी सुंदरी में कच्छ माँ नथी जोई.)
पण ते छता मारो कच्छ केवो
छे तो.
..
खेरी बुरी ने बावरी, फूल कंढा ने कख।
होथल हालो कच्छडे, जीते माडु सवाया लख॥
( कच्छ माँ तो खेर बावळ ने बोर ना कांटाळा झाड़ ज उगे छे, त्यां कोई फूल मेवानी वनस्पति नथी, तोय होथल आज मने मारो कच्छ सांभरे छे, केमके त्या लाखेणा जवामर्दो निपजे छे, हालो होथल इ उज्जड रणवगडा जेवी तोय मरदो नी भोमकामाँ हालो.)
भल घोडा काठी भला, पेनीढक पेरवेश।
राजा जदुवंशरा, ओ डोलरीयो देश॥
( एवा रूडा घोड़ा ने एवा वंका जोद्धाओ पाके छे, जेना अंग ऊपर पग नी पेनी सुधी ढळकता पोशाक शोभे छे, ते पोताना देह जराये उघाड़ो राखवा माँ एब समजे छे, अने ज्यां यदुवंश ना धर्मी राजा राज करे छे, एवा मारा डोलरीया देशमा- मारा कच्छमा- एक वार हालो होथलदे.)
वंका कुँवर विकट भड़, वंका वाछडीये वछ।
वंका कुँवर टी थीये, पाणी पीये जो कच्छ॥
( राजा ना रणबंका कुंवरो, वंका मरदो अने गायो ना वंका वाछडा जो कच्छ नु पाणी पीये तो ज मरदानगी आवे, मारा जखरा-जेसळ ने जो कच्छ नु पाणी पिवडावीए तो ज सावज सरीखा बने.)
हरण अखाड़ा नही छड़े, जनमभोम नरां।
हाथीकें विंध्याचळा, विशरसे मूवां॥
( कनड़ा ना छलकाता सुख नी वच्चे हु मारी जनमभोम ने केम विसरु? हरण एना अखाड़ा ने, मानवी एनी जनमभोम ने अने हाथी विंध्याचल ना पहाड़ो ने केम विसरी शके? एतो मरीये त्यारे ज वीसराय.)
गर मोरा वन कुंजरा, आंबा डाळ सुवा।
सजणरो कवचन जनमधर, विसरसे मूवा॥
( हे होथल, मोर ने एनो डूंगर, कुंजर ने एनु जंगल, सूडा-पोपट ने एनी आंबाडाळ, वहाला स्वजन नो कड़वो बोल, अने पोतपोतानी जन्मभूमी ऐटला तो मरीये तो ज वीसराशे.)
ओढो होथल अने पुत्रो साथे कच्छ आवे छे पण सिमाडे होथल पुत्रो साथे उभी रही जाय छे अने ओढ़ा ने एकला आगड़ जावा सुचवे छे के पेला परिस्थिति नो ताग मेळवी ल्यो पछि अमे आवसु…
ओढ़ा ना कवि मित्र चारण द्वारा तेने विषम परिस्थिति ना समाचार मले छे..
मितर कीजे म्हागणा, अवर आरपंपार।
जीवतडा जश गावशे, मूवे लडावणहार॥
( मित्र करीए तो चारण ने ज करिये, बीजा सहु आळपंपाळ, चारण जीवता जश गाय, पण मूवा पछी पण लाड लडावे.)
जेथी ओढो परिवार साथे कच्छ त्यागी ने पाटन जावा तैयार थाय छे।
पाटन जता पहेला होथल ओढ़ा ने समजावे छे अने पोतानु वचन याद देवरावे छे, के भूल माँ पण मारी ओड़ख न आपवी.
पण पाटण मा ओढ़ा ना पुत्रो, पंदर वर्ष ना इ बाळ जेसळ-जखरो काळझाळ सिंह नो वध करी अद्भुत पराक्रम प्रदर्शित करे छे जेथी त्यां उपस्थित सौ कोई जेसळ-जखरा नु मोसाळ ओढ़ा ने पूछे छे, ओढ़ा ने ख्याल छे के जो हु होथल नी ओडख छती करीश तो विरह सहन करवो पडसे माटे आड़ा-अवडा नामो बतावी वात टाळवा प्रयत्न करे छे, पण त्या हाजर जाणकार न पाडे छे के एवु कोई कुल नथी… एवा नाम नथी… अने ओढ़ा पर हँसे छे…
अंते जेसळ-जखरो पेट माँ कटार नाख्वानी तैयारी दर्शावे छे, के अमारा मोसाळ माँ एवी तो शी कमी छे के आप अचकाव छो… त्यारे कठण हैयु करी ओढो भरडायरा मां होथल नी ओडख आप छे… दिकराव नु मोसाळ तो इंद्रपुर छे… होथल पदमणी छे… अने विरह नो दोर शरु थाय छे…
चिठियु लखियल चार, होथलजे हथड़े।
ओढ़ा वांच निहार, असांजो नेडो एतरो॥
( होथले आसुंडा पाडता ओढ़ा ने कागळ लख्यो, चार ज वेण लख्या, आपणा नेह-स्नेह नो आटले थी ज अंत आव्यो.)
आवन पंखी उड़िया, नही सगड नही पार।
होथल हाली भोंयरे, ओढ़ा तों ज्वार॥
( चिठ्ठी लखि ने होथल चाली निकडी, भोंयरा माँ जइ जोगण ना वेश पहेरी लीधा, प्रभु भजवा लागी, पण भजन माँ चीत शी रीते चोंटे.)
भूंडू लागे भोंयरु, धरती खावा धाय।
ओढ़ा विनानु एकलु, कनडे केम रे’वाय॥
( भोंयरु भेंकार लागे छे, धरती खावा धाय छे, ओढ़ा विनानी एकली होथल कनडा माँ कल्पांत करती रही छे.)
सायर लेर्यु ने पणंग घर, थळ वेळु ने सर वाळ।
दन मा दाडी सांभरे, ओढो एती वार॥
( सायर ना जेटला मोजा, वरसाद ना जेटला बिंदु, रणनी रेती ना जेटला कण, अने शीर पर जेटला वाळ तेटली वार अक्केक दिवस माँ ओढ़ा ने होथल याद करे छे.)
दाडी चडती डुंगरे, दलना करीने दोर।
झाडवे झाडवे जींगरता, केताक उडाडु मोर॥
( डूंगरा ऊपर मोरला टहुके छे अने मने ओढो याद आवे छे, मोरला ने उडाडवा माटे दिल नी पणछ करी ने हु डुंगरे डुंगरे चडु छु पण झाडवे झाडवे ज्यां मोरला गरजे छे त्यां हु केटलाक ने उडाडु?)
एक बाजू होथल पण विरहाग्नि माँ ज्वलित छे बीजी बाजू ओढ़ा जाम पण विरह माँ झुरे छे.
सामी धार दिवा बळे, विजळी चमक भळां।
ओढो आज अणहोरो, होथल नै घरां॥
( सामा डूंगरा माँ दिवा बळे छे, विजळी चमकारा करे छे एवा वर्षा ऋतु ना दिवस माँ ओढो एक्लो झुरे छे, केमके होथल घेर नथी.)
ओढ़ा जाम अने होथल पदमणी अंत सुधि बंने चातको झुरता रह्या.
माथे काळ नी मेघली रात पड़ी, अने संजोग नो सूरज कदिये उग्यो ज नही.
वार्ताकार कहे छे के ओढ़ा नु हैयु विजोगे फाटी पड्यु. अने एना मृतदेह ने दहन करती वखते अंतरिक्ष माथी होथल उपाडी गई. पुत्र ना लग्न वखते होथल पोंखवा आवे छे अने पुत्रवधु पालव झाली रोकी राखे छे…
कनडो डूंगर काठियावाड़ मा बे-त्रण जग्या ये बताववा मा आवे छे, कोई कहे छे पंचाळ मा होथलीयो डूंगर अने रंगतलावडी ऐ होथल नु रहेठाण. कोई मेंदरडा पासे नो कनडो डूंगर कहे छे, ज्यारे कनडो डूंगर कच्छ प्रदेशनीये उत्तरे थरपारकर तरफ होवानु मक्कमपणे कहेवाय छे.
पोस्ट टाइप – दिव्यराजसिंह सरवैया
पुस्तक – सौराष्ट्र नी रसधार.
॥जय माताजी॥
History & Literature
Kiyor kya aavyu bhai
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કહે છે કચ્છ માં આવ્યું અબડાસા તાલુકા માં.
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nareshkumar522064@gmail.com jay ho odhajam
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ધન્યવાદ મિત્ર.
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आपकी ऐतिहासिक कथा अच्छी है इसे हिंदी में भी ट्रांसलेशन करें
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Humara Odho family (Odho,Odhejo,Odheja) jati sub 1500A.D main Hazrat Taj Baghdadi kay haath bayat par Alhamdullilah muslman ho gay. par origin tu mazhab tabili say khatam nahee hota. Hamara khandan bhi Bhuj say Sindh migrate kar gaya tha 400 saal pahlay baad main 1739A.D main upper Sindh apni ODHO jati kay sath migrate kiya abhi hum 280 saal say upper sind main settled hain. Hum sub Odho kul main attay hain, sub JAM ODHO & MATA HOTHAL PADMANI ki olaad hain.Thank You. I shall remain great full for your kind response. keep in touch. TARIQ KHAN ODHO. Village MOHAMMAD PUR ODHO, District Jacobabad. SINDH. Pakistan.
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👍
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Je odha jam na vansaj chhe te kutch kaladhar books vache online malej chhe..
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Thanks Divyarajsinh etihasik jankari aapvabadal tamaro khub khub aabhar
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Dhanywad.
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I like your story sir it’s our royal king I am son of kiyor odha jam rajput hindu great story sir
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Hello. my dear kiram sinh Odho.
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http://www.asanjokutch.com/content/history02.asp
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Please translate Jam Odho history in English so that we may be able to know more. My family SARDAR ODHO FAMILY has complete History but we like to read more from kutch history. i m son of Jam Odho & Hothal padmani. living in Sind from generations. Thank you.
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I will try..
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Hi hu VIJAY sinh kiyor ker
Jamnagar sikka thi chu
Su kiyor history ni book malijase
My mo 7874134440
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Kiyor kya aavyu
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કચ્છ ના અબડાસા તાલુકા માં આવ્યું એમ કહેવાય છે
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Dekh bhai tu aise mat bol bhai ki tu jam odhaji or maa hothal ki santan hai or tu unka vaarish hai unke asli varish hum kiyor (ker) yani chandravanshi rajput hai or tu bhai muslim hai to khud ko unka varish batake unka apmaan mat ker
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Mein tuje hi keh raha hoon tariq khan tu khood ko unka varish batana bandh ker de
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Tu band karde
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Supperb….
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Thank you
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I like your your story sir…!
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