> जुनागढ का नाम सुनते ही लोगो के दिमाग मे “आरझी हकुमत द्वारा जुनागढ का भारतसंघ मे विलय, कुतो के शोखीन नवाब, भुट्टो की पाकिस्तान तरफी नीति ” जैसे विचार ही आयेंगे, क्योकी हमारे देश मे ईतिहास के नाम पर मुस्लिमो और अंग्रेजो की गुलामी के बारे मे ही पढाया जाता है, कभी भी हमारे गौरवशाली पूर्खो के बारे मे कही भी नही पढाया जाता || जब की हमारा ईतिहास इससे कई ज्यादा गौरवशाली, सतत संघर्षपूर्ण और वीरता से भरा हुआ है ||
> जुनागढ का ईतिहास भी उतना ही रोमांच, रहस्यो और कथाओ से भरा पडा है || जुनागढ पहले से ही गुजरात के भुगोल और ईतिहास का केन्द्र रहा है, खास कर गुजरात के सोरठ प्रांत की राजधानी रहा है || गिरीनगर के नाम से प्रख्यात जुनागढ प्राचीनकाल से ही आनर्त प्रदेश का केन्द्र रहा है || उसी जुनागढ पर चंद्रवंश की एक शाखा ने राज किया था, जिसे सोरठ का सुवर्णकाल कहा गया है || वो राजवंश चुडासमा राजवंश | जिसकी अन्य शाखाए सरवैया और रायझादा है ||
> मौर्य सत्ता की निर्बलता के पश्चात मैत्रको ने वलभी को राजधानी बनाकर सोरठ और गुजरात पर राज किया || मैत्रको की सत्ता के अंत के बाद और 14 शताब्दी मे गोहिल, जाडेजा, जेठवा, झाला जैसे राजवंशो के सोरठ मे आने तक पुरे सोरठ पर चुडासमाओ का राज था ||
##########
> भगवान आदिनारायण से 119 वी पीढी मे गर्वगोड नामक यादव राजा हुए, ई.स.31 मे वे शोणितपुर मे राज करते थे || उनसे 22 वी पीढी मे राजा देवेन्द्र हुए, उनके 4 पुत्र हुए,
1) असपत, 2)नरपत, 3)गजपत और 4)भूपत
असपत शोणितपुर की गद्दी पर रहे, गजपत, नरपत और भूपत ने एस नये प्रदेश को जीतकर विक्रम संवत 708, बैशाख सुदी 3, शनिवार को रोहिणी नक्षत्र मे ‘गजनी’ शहर बसाया || नरपत ‘जाम’ की पदवी धारण कर वहा के राजा बने, जिनके वंशज आज के जाडेजा है || भूपत ने दक्षिण मे जाके सिंलिद्रपुर को जीतकर वहां भाटियानगर बसाया, बाद मे उनके वंशज जैसलमेर के स्थापक बने जो भाटी है ||
> गजपत के 15 पुत्र थे, उसके पुत्र शालवाहन, शालवाहन के यदुभाण, यदुभाण के जसकर्ण और जसकर्ण के पुत्र का नाम समा था || यही समा कुमार के पुत्र चुडाचंद्र हुए || वंथली (वामनस्थली) के राजा वालाराम चुडाचंद्र के नाना थे || वो अपुत्र थे ईसलिये वंथली की गद्दी पर चुडाचंद्र को बिठाया || यही से सोरठ पर चुडासमाओ का आगमन हुआ, वंथली के आसपास का प्रदेश जीतकर चुडाचंद्र ने उसे सोरठ नाम दिया, जंगल कटवाकर खेतीलायक जमीन बनवाई, ई.स. 875 मे वो वंथली की गद्दी पर आये || 32 वर्ष राज कर ई.स. 907 मे उनका देहांत हो गया ||
वंथली के पास धंधुसर की हानीवाव के शिलालेख मे लिखा है :
|| श्री चन्द्रचुड चुडाचंद्र चुडासमान मधुतदयत |
जयति नृप दंस वंशातस संसत्प्रशासन वंश ||
– अर्थात् जिस प्रकार चंद्रचुड(शंकर) के मस्तक पर चंद्र बिराजमान है, उसी प्रकार सभी उच्च कुल से राजा ओ के उपर चंद्रवंशी चुडाचंद्र सुशोभित है ||
## चुडासमा/रायझादा/सरवैया वंश की वंशावली ##
1. श्री आदी नारायण
3. अत्रि
5. सोम
11. ययाति
12. यदु
59. सुरसेन
60. वसुदेव
61. श्री कृष्ण
62. अनिरुद्ध
63. वज्रनाभ
140. देवेन्द्र
141. गजपत
142. शालिवाहन
143. यदुभाण
144. जसकर्ण
145. समाकुमार
••• 146. चुडचंद्र (ई.स. 875-907)
••• हमीर
>> चुडचंद्र का पुत्र ||
••• मुलराज (ई.स. 907-915)
>> चुडचंद्र के पश्चात उनका पोत्र मुलराज वंथली की गद्दी पर आया || मुलराज ने सिंध पर चडाई कर किसी समा कुल के राजा को हराया था ||
••• विश्ववराह (ई.स. 915-940)
>> विश्ववराह ने नलिसपुर राज्य जीतकर सौराष्ट्र का लगभग समस्त भुभाग जीत लिया था ||
••• रा’ ग्रहरिपु (ई.स. 940-982)
>> * विश्ववराह का पुत्र
* नाम – ग्रहार / ग्रहरिपु / ग्रहारसिंह / गारियो
* “रा’ / राह” पदवी धारन करने वाला प्रथम राजा (महाराणा/राओल/जाम जैसी पदवी जिसे ये राजा अपने नाम के पहले लगाते थे)
* कच्छ के राजा जाम लाखा फुलानी का मित्र
* मुलराज सोलंकी, रा’ग्रहरिपु और जाम लाखा फुलानी समकालिन थे
* आटकोट के युद्ध (ई.स. 979) मे मुलराज सोलंकी vs रा’ और जाम थे.
* जाम लाखा की मृत्यु उसी युद्ध मे हुई थी
* रा’ ग्रहरिपु की हार हुई और जुनागढ को पाटन का सार्वभौमत्व स्विकार करना पडा.
••• रा’ कवांट (ई.स. 982-1003)
>> ग्रहरिपु का बडा पुत्र, तलाजा के उगा वाला उसके मामा थे, जो जुनागढ के सेनापति बने. मुलराज सोलंकी को आटकोट युद्ध मे मदद करने वाले आबु के राजा को उगा वाला ने पकडकर जुनागढ ले आये….रा’ कवांट ने उसे माफी देकर छोड दिया… रा’ और मामा उगा के बीच कुछ मनभेद हुए इससे दोनो मे युद्ध हुआ और उगा वाला वीरगति को प्राप्त हुए ||
••• रा’ दियास (ई.स. 1003-1010)
>> अबतक पाटन और जुनागढ की दुश्मनी काफी गाढ हो चुकी थी | पाटन के दुर्लभसेन सोलंकी ने जुनागढ पर आक्रमन कीया | जुनागढ का उपरकोट तो आज भी अजेय है, इसलिये दुर्लभसेन ने रा’ दियास का मस्तक लानेवाले को ईनाम देने लालच दी | रा’ के दशोंदी चारन बीजल ने ये बीडा उठाया, रा’ ने अपना मस्तक काटकर दे दिया |
(ई.स. 1010-1025) – सोलंकी शासन
••• रा’ नवघण (ई.स. 1025-1044)
>> * रा’ दियास के पुत्र नवघण को एक दासी ने बोडीदर गांव के देवायत आहिर के घर पहुंचा दिया, सोलंकीओ ने जब देवायत को रा’ के पुत्र को सोंपने को कहा तो देवायत ने अपने पुत्र को दे दिया, बाद मे अपने साथीदारो को लेकर जुनागढ पर रा’ नवघण को बिठाया|
* गझनी ने ई.स 1026 मे सोमनाथ लुंटा तब नवघण 16 साल का था, उसकी सेना के सेनापति नागर ब्राह्मन श्रीधर और महींधर थे, सोमनाथ को बचाते हुए महीधर की मृत्यु हो गई थी |
* देवायत आहिर की पुत्री और रा’ नवघण की मुंहबोली बहन जाहल जब अपने पति के साथ सिंध मे गई तब वहां के सुमरा हमीर की कुदृष्टी उस पर पडी, नवघण को यह समाचार मिलते ही उसने पुरे सोरठ से वीरो को ईकठ्ठा कर सिंध पर हमला कर सुमरा को हराया, उसे जीवतदान दिया | (संवत 1087)
••• रा’ खेंगार (ई.स. 1044-1067)
>> रा’ नवघण का पुत्र, वंथली मे खेंगारवाव का निर्माण किया |
••• रा’ नवघण 2 (ई.स. 1067-1098)
>> * पाटन पर आक्रमन कर जीता, समाधान कर वापिस लौटा | अंतिम समय मे अपनी चार प्रतिज्ञाओ को पुरा करने वाले पुत्र को ही राजा बनाने को कहा | सबसे छोटे पुत्र खेंगार ने सब प्रतिज्ञा पुरी करने का वचन दिया इसलिये उसे गद्दी मिली |
* नवघण के पुत्र :
• सत्रसालजी – (चुडासमा शाखा)
• भीमजी – (सरवैया शाखा)
• देवघणजी – (बारैया चुडासमा शाखा)
• सवघणजी – (लाठीया चुडासमा शाखा)
• खेंगार – (जुनागढ की गद्दी)
••• रा’ खेंगार 2 (ई.स. 1098-1114)
>> * सिद्धराज जयसिंह सोलंकी का समकालिन और प्रबल शत्रु |
* उपरकोट मे नवघण कुवो और अडीकडी वाव का निर्माण कराया |
* सती राणकदेवी खेंगार की पत्नी थी |
* सिद्धराज जयसिंह ने जुनागढ पर आक्रमन कीया 12 वर्ष तक घेरा लगाया लेकिन उपरकोट को जीत ना पाया |
* सिद्धराज के भतीजे जो खेंगार के भांजे थ़े देशल और विशल वे खेंगार के पास ही रहते थे, सिद्धराज जयसिंह ने उनसे दगा करवाकर उपरकोट के दरवाजे खुलवाये |
* खेंगार की मृत्यु हो गई, सभी रानीयों ने जौहर किये, रानी रानकदेवी को सिद्धराज अपने साथ ले जाना चाहता था लेकिन वढवाण के पास रानकदेवी सति हुई, आज भी वहां उनका मंदीर है |
(ई.स. 1114-1125) – सोलंकी शासन
••• रा’ नवघण 3 (ई.स. 1125-1140)
>> अपने मामा जेठवा नागजी और मंत्री सोमराज की मदद से जुनागढ जीतकर पाटन को खंडणी भर राज किया |
••• रा’ कवांट 2 (ई.स. 1140-1152)
>> पाटन के कुमारपाल से युद्ध मे मृत्यु |
••• रा’ जयसिंह (ई.स. 1152-1180)
>> * संयुक्ता के स्वयंवर मे गये थे, जयचंद को पृथ्वीराज के साथ युद्ध मे सहायता की थी |
••• रा’ रायसिंहजी (ई.स. 1180-1184)
>> जयसिंह का पुत्र |
••• रा’ महीपाल (ई.स. 1184-1201)
>> ईनके समय घुमली के जेठवा के साथ युद्ध होते रहे |
••• रा’ जयमल्ल (ई.स. 1201-1230)
>> इनके समय भी जुनागढ और घुमली के बीच युद्ध होते रहे |
••• रा’ महीपाल 2 (ई.स. 1230-1253)
>> * ई.स.1250 मे सेजकजी गोहिल मारवाड से सौराष्ट्र आये, रा’ महिपाल के दरबार मे गये |
* रा’महीपाल का पुत्र खेंगार शिकार पर गया, उसका शिकार गोहिलो की छावनी मे गया, इस बात पर गोहिलो ने खेंगार को केद कर उनके आदमियो को मार दिया, रा’ ने क्षमा करके सेजकजी को जागीरे दी, सेजकजी की पुत्री का विवाह रा’ महीपाल के पुत्र खेंगार से किया |
••• रा’ खेंगार 3 (ई.स. 1253-1260)
>> अपने पिता की हत्या करने वाले एभल पटगीर को पकड कर क्षमादान दीया जमीन दी |
••• रा’ मांडलिक (ई.स. 1260-1306)
>> रेवताकुंड के शिलालेख मे ईसे मुस्लिमो पर विजय करनेवाला राजा लिखा है |
••• रा’ नवघण 4 (ई.स. 1306-1308)
>> राणजी गोहिल (सेजकजी गोहिल के पुत्र) रा’ नवघण के मामा थे, झफरखान के राणपुर पर आक्रमण करने के समय रा’ नवघण मामा की सहाय करने गये थे, राणजी गोहिल और रा’ नवघण उस युद्ध वीरोचित्त मृत्यु को प्राप्त हुए | ( ये राणपुर का वही युद्ध है जिसमे राणजी गोहिल ने मुस्लिमो की सेना को हराकर भगा दिया था, लेकिन वापिस लौटते समय राणजी के ध्वज को सैनिक ने नीचे रख दिया और वहा महल के उपर से रानीयो ने ध्वज को नीचे गीरता देख राणजी की मृत्यु समजकर कुवे मे गीरकर जौहर किया ये देख राणजी वापिस अकेले मुस्लिम सेना पर टुट पडे और वीरगति को प्राप्त हुए )
••• रा’ महीपाल 3 (ई.स. 1308-1325)
>> सोमनाथ मंदिर की पुनःस्थापना की |
••• रा’ खेंगार 4 (ई.स. 1325-1351)
>> सौराष्ट्र मे से मुस्लिम थाणो को खतम किया, दुसरे रजवाडो पर अपना आधिपत्य स्थापित किया |
••• रा’ जयसिंह 2 (ई.स. 1351-1373)
>> पाटन से झफरखान ने जुनागढ मे छावनी डाली, रा’ को मित्रता के लिये छावनी मे बुलाकर दगे से मारा, रा’जयसिंह ने तंबु मे बैठे झफरखां के 12 सेनापतिओ को मार दिया, उन सेनापतिओ कि कबरे आज जुनागढ मे बाराशहिद की कबरो के नाम से जानी जाती है |
••• रा’ महीपाल 4 (ई.स. 1373)
>> झफरखाँ के सुबे को हराकर वापिस जुनागढ जीता, सुलतान से संधि करी |
••• रा’ मुक्तसिंहजी (भाई) (ई.स. 1373-1397)
>> रा’ महिपाल का छोटा भाई , दुसरा नाम – रा’ मोकलसिंह |
••• रा’ मांडलिक 2 (ई.स. 1397-1400)
>> अपुत्र मृत्यु |
••• रा’ मेंलंगदेव (भाई) (ई.स. 1400-1415)
>> * मांडलिक का छोटा भाई |
* वि.सं. १४६९ ज्येष्ठ सुदी सातम को वंथली के पास जुनागढ और गुजरात की सेना का सामना हुआ, राजपुतो ने मुस्लिमो को काट दिया, सुलतान की हार हुई |
* ईसके बाद अहमदशाह ने खुद आक्रमन करा, राजपुतो ने केसरिया (शाका) किया, राजपुतानीओ ने जौहर किये, रा’ के पुत्र जयसिंह ने नजराना देकर सुलतान से संधि की |
••• रा’ जयसिंहजी 3 (ई.स.1415-1440)
>> गोपनाथ मंदिर को तोडने अहमदशाह की सेना जब झांझमेर आयी तब झांझमेर वाझा (राठौर) ठाकुरो ने उसका सामना किया, रा’जयसिंह ने भी अपनी सेना सहायार्थे भेजी थी, ईस लडाई मे भी राजपुत मुस्लिमो पर भारी पडे, सुलतान खुद सेना सहित भाग खडा हुआ |
••• रा’ महीपाल 5 (भाई) (ई.स.1440-1451)
>> पुत्र मांडलिक को राज सौंपकर संन्यास लेकर गिरनार मे साधना करने चले गये |
••• रा’ मांडलिक 3 (ई.स. 1451-1472)
>> * जुनागढ का अंतिम हिन्दु शासक |
* सोमनाथ का जिर्णोद्धार कराया |
* ई.स.1472 मे गुजरात के सुल्तान महमुद शाह (बेगडा) ने जुनागढ पर तीसरी बार आक्रमण किया, जुनागढ की सेना हारी, राजपुतो ने शाका और राजपुतानीयो ने जौहर किये, दरबारीओ के कहने पर रा’मांडलिक युद्ध से नीकलकर कुछ साथियो के साथ ईडर जाने को निकले ताकी कुछ सहाय प्राप्त कर सुल्तान से वापिस लड शके, सुल्तान को यह बात पता चली, उसने कुछ सेना मांडलिक के पीछे भेजी और सांतली नदी के मेदान मे मांडलिक की मुस्लिमो से लडते हुए मृत्यु हुई |
√√√√√ रा’मांडलिक की मृत्यु के पश्चात जुनागढ हंमेशा के लिये मुस्लिमो के हाथ मे गया, मांडलिक के पुत्र भुपतसिंह के व्यक्तित्व, बहादुरी व रीतभात से प्रभावित हो महमुद ने उनको बगसरा (घेड) की चौरासी गांवो की जागीर दी, जो आज पर्यंत उनके वंशजो के पास है |
* रा’मांडलिक के पुत्र भुपतसिंह और उनके वंशज ‘रायजादा’ कहलाये, रायजादा मतलब राह/रा’ का पुत्र |
••• रायजादा भुपतसिंह (ई.स. 1471-1505)
>> रायजादा भुपतसिंह के वंशज आज सौराष्ट्र प्रदेश मे रायजादा राजपुत कहलाते है,
* चुडासमा, सरवैया और रायजादा तीनो एक ही वंश की तीन अलग अलग शाख है | तीनो शाख के राजपुत खुद को भाई मानते है, अलग अलग समय मे जुदा पडने पर भी आज एक साथ रहते है |
> मध्यकालीन समय की दृष्टी से ईतिहास को देखे तो यह समय ‘राजपुत शासनकाल’ का सुवर्णयुग रहा | समग्र हिन्दुस्तान मे राजकर्ता ख्यातनाम राजपुत राजा ही थे | ईन राजपुत राजाओ मे सौराष्ट्र के प्रसिद्ध और समृद्ध राजकुल मतलब चुडासमा राजकुल, जिसने वंथली, जुनागढ पर करीब 600 साल राज किया, ईसिलिये मध्यकालिन गुजरात के ईतिहास मे चुडासमा राजपुतो का अमुल्य योगदान रहा है ||
° चुडासमा सरवैया रायजादा राजपूतो के गांव °
( रायजादा के गांव )
1. सोंदरडा 2. चांदीगढ 3. मोटी धंसारी
4. पीपली 5. पसवारिया 6. कुकसवाडा
7. रुपावटी 8. मजेवडी 9. चूडी- तणसा के पास
10. भुखी – धोराजी के पास 11. कोयलाणा (लाठीया)
( सरवैया के गांव )
सरवैया (केशवाला गांव भायात)
1. केशवाला 2. छत्रासा 3. देवचडी
4. साजडीयाली 5. साणथली 6. वेंकरी
7. सांढवाया 8. चितल 9. वावडी
सरवैया ( वाळाक के गांव)
1. हाथसणी 2. देदरडा 3. देपला
4. कंजरडा 5. राणपरडा 6. राणीगाम
7. कात्रोडी 8. झडकला 9. पा
10. जेसर 11. चिरोडा 12. सनाला
13. राजपरा 14. अयावेज 15. चोक
16. रोहीशाळा 17. सातपडा 18. कामरोल
19. सांगाणा 20. छापरी 21. रोजिया
22. दाठा 23. वालर 24. धाणा
25. वाटलिया 26. सांखडासर 27. पसवी
28. मलकिया 29. शेढावदर
सरवैया के और गांव जो अलग अलग जगह पर हे
1. नाना मांडवा 2. लोण कोटडा 3. रामोद
4. भोपलका 6. खांभा ( शिहोर के पास ) 7. विंगाबेर. 8. खेडोई
( चुडासमा के गांव )
🔺जो चुडासमा को उपलेटा-पाटणवाव विस्तार की ओसम की चोराशी राज मे मीली वो लाठीया और बारिया चुडासमा के नाम से जाने गए
बारिया चुडासमा के गांव
1. बारिया 2. नवापरा 3. खाखीजालिया
4. गढाळा 5. केराळा 6. सवेंतरा
7. नानी वावडी 8. मोटी वावडी 9. झांझभेर
10. भायावदर 11. कोलकी
लाठिया चुडासमा के गांव
1. लाठ 2. भीमोरा 3. लिलाखा
4. मजीठी 5. तलगणा 6. कुंढेच
7. निलाखा
चुडासमा के गांव ( भाल विस्तार, धंधुका )
1. तगडी 2. परबडी 3. जसका
4. अणियारी 5. वागड 6. पीपळी
7. आंबली 8. भडियाद 9. धोलेरा
10. चेर 11. हेबतपुर 12. वाढेळा
13. बावलियारी 14. खरड 15. कोठडीया
16. गांफ 17. रोजका 18. उचडी
19. सांगासर 20. आकरू 21. कमियाळा
22. सांढिडा 23. बाहडी (बाड़ी) 24. गोरासु
25. पांची 26. देवगणा 27. सालासर
28. कादिपुर 29. जींजर 30. आंतरिया*
31. पोलारपुर 33. शाहपुर
33. खमीदाणा, जुनावडा मे अब कोइ परिवार नही रहेता
चुडासमा के अन्य गांव
1. लाठीया खखावी 2. कलाणा 3. चित्रावड
4. चरेल (मेवासिया चुडासमा) 5. बरडिया
• संदर्भ •
( गुजराती ग्रंथ)
* गुजराती मध्यकालीन राजपुत साहित्यनो ईतिहास – ले. दुर्गाशंकर शास्त्री
* सौराष्ट्रनो ईतिहास – ले. शंभुप्रसाद ह. देसाई
* यदुवंश प्रकाश – ले. मावदानजी रत्नु
* दर्शन अने ईतिहास – ले. डो.राजेन्द्रसिंह रायजादा
* चुडासमा राजवंशनी प्रशस्ति कविता – ले. डो.विक्रमसिंह रायजादा
* प्रभास अने सोमनाथ – ले. शंभुप्रसाद देसाई
* सोरठ दर्शन – सं. नवीनचंद्र शास्त्री
* सोमनाथ – ले. रत्नमणीराव भीमराव
* तारीख ए सोरठ – दीवान रणछोडजी
* चक्रवर्ती गुर्जरो – ले. कनैयालाल मुन्शी
(हिन्दी ग्रंथ)
* कहवाट विलास – सं. भाग्यसिंह शेखावत
* रघुवर जस प्रकाश – सीताराम कालस
* मांडलिक काव्य – गंगाधर शास्त्री
(सामयिको की सुची)
* पथिक (खास सौराष्ट्र अंक) (May/June 1971)
* उर्मी नवरचना (1971, 1988, 1989)
* राजपुत समाज दर्पण (August 1990)
* क्षत्रियबंधु (June 1992)
* चित्रलेखा (30/03/1992)
(हस्तप्रतो की सुची)
* सौराष्ट्र युनि., गुजराती भाषा – साहित्य भवन, राजकोट के हस्तप्रतभंडार से…
* बोटाद कवि विजयकरण महेडु के हस्तप्रतसंग्रह से…
* स्व श्री बाणीदानजी बारहठ (धुना) के हस्तप्रतभंडार से…
_/\_ समाप्त _/\_
History & Literature
abhar RAA DIVYARAJSINH SARVAIYA [DEDARDA] shakhagotra mate
LikeLiked by 1 person
हुकुम अपने महाराज रा केवाट द्वितीय के पुत्र महाराज खेतसिंह खंगार जी का कोई जिक्र क्यों नहीं किया अपने ,महाराज ने खेगार वंश की शाखा का विस्तार बुन्देलखण्ड तक किया । हुकुम आपसे आग्रह है कि महाराज खेतसिंह खंगार के बारे में भी अपनी वंशावली में संशोधन करके जोड़े महाराज ने खंगार वंश के विस्तार के लिए पूरा बुन्देलखण्ड को विजय करके खंगार वंश की नीव रखी थी। अगर वो दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान के साथ दिल्ली ना जाते तो आज जूनागढ़ की गद्दी पर उनका भी नाम अंकित होता। हुकुम चूडा समा वंश के लिए गया किया बलिदान उनका आप व्यर्थ मत जाने दीजिए। हुकुम कृपया मेरी इस बात को गंभीरता से लेके विचार कीजिए। जय मा गजानन 🚩 जय राजपुताना 🙏
LikeLike
Khub Saras Bhai 🙏🏻
LikeLiked by 1 person
ધન્યવાદ ભાઈ
LikeLike
રાજ્ય ઝેસ્ટ પુત્ર Kwat યૂ રાજ્ય જય સિંહ મોટાભાઈ, શ્રી પ્રમુખ Kheta Khangar પણ ઉલ્લેખ કર્યો ન હતો. જે રાજ્ય Khangar વંશજો પરિણમ્યું સિંહ પર નવો ધંધો શરૂ રાજાઓ શરૂઆતમાં થયું, જે Mahoba ના પૃથ્વીરાજ ચંદેલ રાજા Prmal દેબ યૂ પરાક્રમી વિશિષ્ટ ઉડાલનો એક ભવ્ય ગઢ પાયો નાખ્યો Garh Kundar Khangar રાજવંશ Khangar રાજવંશ Garh Kundar હરાવ્યો બાંધવા નામોની લખવા નિયમ જે દરમિયાન 1182 1347 થી ઈસવીસન પુર્વે Khangar રાજવંશ દ્વારા કરવામાં બાંધકામ કિલો 338 નાના અને મોટા ટ્રેનો સુધી ચાલ્યો હતો
LikeLike
रा कवाट के जेस्ट पुत्र एव रा जय सिंह के बडे भ्राता श्री रा खेता खंगार का जिक्र तक नही किया गया है। जिनके कारण ही रा खंगार वंश के राजाओ के नाम के आगे सिंह शब्द लगना प्रारम्भ हुवा जिन्होने प्रथ्वीराज की महोबा के चंदेल नरेश परमाल देब एव वीर आला उदल को पराजित कर गढ़कुंडार में भव्य किले का निर्माण करा कर खंगार राजवंश की नीव रखी गढ़कुंडार में खंगार राजवंश का शासन 1182 से 1347 ईस्वी तक रहा जिसके दौरान 338 छोटी बड़ी गाड़ियों किलो का निर्माण खंगार राजवंश द्वारा कराया गया
LikeLike
जी कुंवर गुलाब सिंह खंगार हम आपकी बात से सहमत है, इसमें महाराज रा केवट द्वितीय के पुत्र महाराज खेतसिंह खंगार का कोई जिक्र ही नहीं किया गया हैं।
LikeLike
Bhai koi ne pan kadi paherva vise ni mahiti proof sahit male to pls aa number par whats app karo
9879999741
Divyarajsinh chudasama
LikeLike
Sir Sarvaiya ka gotta or uski puri jankari chahiye
LikeLike
Aap kaha se hai?
LikeLike
sir ra sarnem kem padi teni mahiti joyie
hu junagadh jilla na kanza gam ma rahusu
LikeLike
રા’ શબ્દ સરનેમ/અટક નથી, રા’ બિરુદ છે, એક રીતે રાજા શબ્દ નું ટૂંકું સ્વરૂપ પણ કહી શકાય. વંથલી ની ગાદીએ વિશ્વવરાહ થયા તેમના નામ નો છેલ્લો શબ્દ “રાહ” તેમના પછીના રાજવીઓએ પોતાના નામ આગળ લગાવવું શરૂ કર્યું જે આગળ જતાં “રાહ” માંથી અપભ્રંશ થઈ ને રા’ તરીકે પ્રચલિત બન્યું.
LikeLike
हुकुम अपने महाराज रा केवाट द्वितीय के पुत्र महाराज खेतसिंह खंगार जी का कोई जिक्र क्यों नहीं किया अपने ,महाराज ने खेगार वंश की शाखा का विस्तार बुन्देलखण्ड तक किया । हुकुम आपसे आग्रह है कि महाराज खेतसिंह खंगार के बारे में भी अपनी वंशावली में संशोधन करके जोड़े महाराज ने खंगार वंश के विस्तार के लिए पूरा बुन्देलखण्ड को विजय करके खंगार वंश की नीव रखी थी। अगर वो दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान के साथ दिल्ली ना जाते तो आज जूनागढ़ की गद्दी पर उनका भी नाम अंकित होता। हुकुम चूडा समा वंश के लिए गया किया बलिदान उनका आप व्यर्थ मत जाने दीजिए। हुकुम कृपया मेरी इस बात को गंभीरता से लेके विचार कीजिए। जय मा गजानन 🚩 जय राजपुताना 🙏
अगर अपने हमारे महाराजा खेत सिंह खान्गर जिक्र नहीं किया तो ये राजपूत समाज मे शोर मच जाएगा फिर आप समझ लेना
क्षमा चाहता हूँ पर मेरा महाराजा खेत सिंह खान्गर जी कि जिक्र किजिये जय माँ भवानी 🚩 जय राजपुताना 🙏
LikeLike
Chudasama ke gav
Vadhiyar ma
At-Kathi,ta -sami dist-patan.
At-bhilot ta-Radhanpur,di-patan.
At-naytvada ta-Radhanpur,di-patan
LikeLike
આ ગામ માં કેટલા ઘર છે અને ક્યાંથી આવ્યા?
LikeLike
Ra Diyach is Raja Samrath Dhaj king of sindh and junagadh too he built kagarol fort in agra dear you missing lots of fact related kagarol mheroli bahror badli khengar clan khrangar also in haryana and west up also. I have some facts where you can add Ror Clan in this given story. Jai kshtriya jai ra diyach.
Dear you will happy today ra is convert into Ror name my ancestors history linked here… Even I have lots of fact my history and culture match with ra dynasty people. Ra is Ror now and 3 lakh Ra/Ror live in haryana uttarakhand Uttarpradesh with same name.
LikeLike
Send me proofs on bapusarvaiya@gmail.com
LikeLike
Ra Diyach is Raja Samrath Dhaj king of sindh and junagadh too he built kagarol fort in agra dear you missing lots of fact related kagarol mheroli bahror badli khengar clan khrangar also in haryana and west up also. I have some facts where you can add Ror Clan in this given story. Jai kshtriya jai ra diyach.
LikeLike
Jay shree krishna jay yaduvansh jay rajputana jujarat ki sabhi yaduvanshi bhaiyo se nevedan h apne contect no bhi de jay yaduvansh jay rajputana
LikeLike
Rana also included Junagadh Raa Vansh. Raa have total 4 types of rajputs Chudasama, sarvaiya, raijada and rana. Please added rana. Here attach link of vodeo of Raa Vanshaj which have rana history.
LikeLike
સાચી વાત છે, જૂની પોસ્ટ હોવાથી એડિટ કરી શકવા સક્ષમ નથી,
સરવૈયા, ચુડાસમા, રાયજાદા અને રણા ચાર શાખા જૂનાગઢ રા ચુડાસમા રાજવંશની જ શાખાઓ છે.
LikeLike
When i know this things now I M PROUD to be
Chudasama
LikeLike
ધન્યવાદ.
LikeLike
there are same missing. we are staying in junagadh dist. post of mangrol . village- Maktupur, rahij, lohij, etc.
LikeLike
चुडासमा are said to be Ahir Rana.
Are they belong to Ahirs community.
Myself Arun Kumar Yaduvanshi (Ahir)
LikeLike
No, that os fake
LikeLike
NO, That is fake news.
LikeLike
una thi 30 kilomitre upar bhatta jogni nu mandir avelu che koi pase itihash hoi to mokl jo
LikeLike
jay girnar jay maa gajanan
LikeLike
रा’ ग्रहरिपु એ કોઈ સ્રાપ માથી મૂક્ત થવા કઈક ફૂલેકૂ કાઢ્યૂ હતૂ એની યાદ મા આજે પણ જૂનાગઢ બાજૂ ના ગામ મા બે રાણી સાથે રા નૂ ફૂલેકૂ કાઢે છે એવી કઈક પ્રથા છે તો આના વીષે ઈતીહાસીક ડીટેઈલ જણાવજો ને 🙏
LikeLike
जय गजानन माता💙 जय क्षत्रिय खँगार राजवंश 🙏गौरवमय इतिहास 💐जय राजपूताना🇮🇳
LikeLike
Jai ma gajanan Jai bhavani🙏Kya aap jaante hai Maharaja khet sing ji ke bansaj kon hai ,aor khangar likhna kha se start hua .Chudasama dynesty me Ra kabat aor unke bansaj ra khengar ka koi samabndh hai kya maharaja khetsing ji se ?
LikeLike
Bhai hal Junaghadh dist. mangrol taluka ma 7 gam che j add karavana che
LikeLiked by 2 people
મને મોકલી આપશો હું એડ કરી સુધારો કરી આપીશ.
LikeLike
The king Ra kabat aor ra khengar ji ka pura jaankari bta sakte hain ? Ye khangar words kha se aaya aor kya Khangar King Gadkundar naresh Maharaja Khetsing khangar ka koi sambandh hain kya chudasama bans se agar hai to jaakari dene ki krapa karen aor nahi hai to khengar likhne ka abhipray btane ki krapa karen sir🙏
LikeLike
My whatsapp no is 7722848360🙏
LikeLike
જય માતાજી
Ra’ Rana na gamo pn Lakho Chudasama, Rayzada, Sarvaiya ane Rana 4 Shakha thai Ra’ રણા vishe kai Mahiti hoi to Edit Karsho.
LikeLike
thanks ,
LikeLike
Bhai mangrol taluka na rahij ma hal 7 gam che chudasama na Junaghadh dist ma
LikeLiked by 1 person
Lion and RA both are same
I Khodiyar
LikeLiked by 1 person
Lion and RA are both same
LikeLiked by 1 person
RAA IS KING
LikeLiked by 1 person